जब देश की सीमा पर कोई जवान शहीद होता है तो उस समय हमारी सरकारें उसके परिवार के लिए तरह-तरह की घोषणाएं करती हैं | उन घोषणाओं में से असलियत में कितनी कार्यान्वित होती हैं उनके बारे में कम ही लोगों को पता चलता है | लेकिन जो जवान वीरगति को प्राप्त नहीं होते, केवल ज़ख़्मी होते हैं, उन जवानों के बारे में कम ही लोगों को पता चलता है | हाल ही में एक समाचार पत्र में एक ऐसे ही वीर जवान की कहानी बताई गयी जो कारगिल युद्ध में दुश्मन से लोहा लेते हुए जख्मी हुआ और अपना एक पैर हमेशा के लिए खो दिया | उस वीर जवान को आज एक जूस की दूकान चला के अपने परिवार का पालन पोषण करना पड़ रहा है |
सतबीर सिंह ने राजपुताना राइफल्स में रहते हुए जम्मू कश्मीर में आठ साल से ज्यादा का समय बिताया और कारगिल युद्ध में दुश्मन से लोहा लेते हुए अपने पैर में गोली लगने के कारण हमेशा के लिए अपाहिज हो गए, जिसके चलते उन्हें voluntary retirement लेना पड़ा | उस समय उनकी पेंशन 4000 रूपए प्रतिमाह निर्धारित हुई थी | उस समय के नियमानुसार युद्ध में घायल फौजियों को सेनानिवृत करने पर खेती के लिए जमीन दी जाती थी , जिसके लिए उन्होंने सरकारी दफ्तरों के अनगिनत चक्कर काटे | ऐसे सेवानिवृत फौजियों के लिए पेट्रोल पंप का लाइसेंस देने का भी प्रावधान है | काफी दिक्कतों के बाद उन्हें एक एकड़ जमीन खेती के लिए दी गई जिसे साढ़े चार साल बाद वापस ले लिया गया |
कुछ समय पहले उनसे 40,332 रूपए प्रतिमाह पेंशन और बच्चों की पढाई का खर्चा सरकार द्वारा उठाने का वादा किया गया था, जो की अभी तक पूरा होता हुआ नज़र नहीं आता | पिछले दो दशकों में सतबीर सिंह जी ने मजदूरी, खेती, इलेक्ट्रिशियन जैसे काम कर के अपने परिवार का पालन पोषण भी किया और सरकारी दफ्तरों के चक्कर भी काटे | इस दौरान उनकी पेंशन 4000 रूपए से बढ़ कर करीब 23000 रूपए हो चुकी है, जो की परिवार की जिम्मेदारियों और बच्चों की पढाई के लिए पर्याप्त नहीं है | आज दिल्ली के नज़दीक एक गाँव में जूस की छोटी सी दूकान चला कर वो अपनी जिम्मेदारी निभा रहे हैं |
अब 55 साल के हो चुके सतबीर सिंह जी के अनुसार यदि वो वीरगति को प्राप्त हो गए होते तो शायद उनके परिवार को इन दिक्कतों से गुज़ारना नहीं पड़ता | शहीदों के परिवारों के साथ शायद न्याय हो जाता है , उन्हें पैसों की मदद भी मिलती है और परिवार के एक सदस्य को नौकरी भी , लेकिन घायल फौजियों की दिक्कत की तरफ किसी का ध्यान नहीं जाता |
ऐसी सच्ची आपबीती सुनने के बाद मन में गुस्सा भी आता है और खुद का जनता का सेवक कहने वाले नेताओं का असली चेहरा भी नज़र आता है | पिछले दो दशकों में हर दल की सरकार रही है लेकिन ऐसे मुद्दों पर किसी ने काम नहीं किया | क्या देश के लिए लड़ना केवल एक मध्यमवर्गीय कर्मचारी या एक किसान के बेटे को धर्म है | कितने नेताओं और व्यापारियों के बच्चे फ़ौज में नौकरी करते हैं , अगर करते तो शायद ऐसा अन्याय नहीं होता | नेता यदि एक दिन भी संसद या विधान सभा में चला जाए तो उनकी उम्र भर की पेंशन बंध जाते है, लेकिन एक फौजी जो अपने अपने जीवन का सबसे ख़ास हिस्सा देश के लिए बलिदान करता है उसके हाथ क्या आता है | जब एक मध्यमवर्गीय या गरीब व्यक्ति सरकारी दफ्तरों के चक्कर काटता है तो शायद इतना दुःख नहीं होता , जो ऐसे फौजियों की कहानी सुन कर होता है |
Reference :
https://m.dailyhunt.in/news/india/english/laughingcolours+english-epaper-laughcole/kargil+hero+now+runs+a+juice+shop+in+delhi-newsid-94536079
सतबीर सिंह ने राजपुताना राइफल्स में रहते हुए जम्मू कश्मीर में आठ साल से ज्यादा का समय बिताया और कारगिल युद्ध में दुश्मन से लोहा लेते हुए अपने पैर में गोली लगने के कारण हमेशा के लिए अपाहिज हो गए, जिसके चलते उन्हें voluntary retirement लेना पड़ा | उस समय उनकी पेंशन 4000 रूपए प्रतिमाह निर्धारित हुई थी | उस समय के नियमानुसार युद्ध में घायल फौजियों को सेनानिवृत करने पर खेती के लिए जमीन दी जाती थी , जिसके लिए उन्होंने सरकारी दफ्तरों के अनगिनत चक्कर काटे | ऐसे सेवानिवृत फौजियों के लिए पेट्रोल पंप का लाइसेंस देने का भी प्रावधान है | काफी दिक्कतों के बाद उन्हें एक एकड़ जमीन खेती के लिए दी गई जिसे साढ़े चार साल बाद वापस ले लिया गया |
कुछ समय पहले उनसे 40,332 रूपए प्रतिमाह पेंशन और बच्चों की पढाई का खर्चा सरकार द्वारा उठाने का वादा किया गया था, जो की अभी तक पूरा होता हुआ नज़र नहीं आता | पिछले दो दशकों में सतबीर सिंह जी ने मजदूरी, खेती, इलेक्ट्रिशियन जैसे काम कर के अपने परिवार का पालन पोषण भी किया और सरकारी दफ्तरों के चक्कर भी काटे | इस दौरान उनकी पेंशन 4000 रूपए से बढ़ कर करीब 23000 रूपए हो चुकी है, जो की परिवार की जिम्मेदारियों और बच्चों की पढाई के लिए पर्याप्त नहीं है | आज दिल्ली के नज़दीक एक गाँव में जूस की छोटी सी दूकान चला कर वो अपनी जिम्मेदारी निभा रहे हैं |
अब 55 साल के हो चुके सतबीर सिंह जी के अनुसार यदि वो वीरगति को प्राप्त हो गए होते तो शायद उनके परिवार को इन दिक्कतों से गुज़ारना नहीं पड़ता | शहीदों के परिवारों के साथ शायद न्याय हो जाता है , उन्हें पैसों की मदद भी मिलती है और परिवार के एक सदस्य को नौकरी भी , लेकिन घायल फौजियों की दिक्कत की तरफ किसी का ध्यान नहीं जाता |
ऐसी सच्ची आपबीती सुनने के बाद मन में गुस्सा भी आता है और खुद का जनता का सेवक कहने वाले नेताओं का असली चेहरा भी नज़र आता है | पिछले दो दशकों में हर दल की सरकार रही है लेकिन ऐसे मुद्दों पर किसी ने काम नहीं किया | क्या देश के लिए लड़ना केवल एक मध्यमवर्गीय कर्मचारी या एक किसान के बेटे को धर्म है | कितने नेताओं और व्यापारियों के बच्चे फ़ौज में नौकरी करते हैं , अगर करते तो शायद ऐसा अन्याय नहीं होता | नेता यदि एक दिन भी संसद या विधान सभा में चला जाए तो उनकी उम्र भर की पेंशन बंध जाते है, लेकिन एक फौजी जो अपने अपने जीवन का सबसे ख़ास हिस्सा देश के लिए बलिदान करता है उसके हाथ क्या आता है | जब एक मध्यमवर्गीय या गरीब व्यक्ति सरकारी दफ्तरों के चक्कर काटता है तो शायद इतना दुःख नहीं होता , जो ऐसे फौजियों की कहानी सुन कर होता है |
Reference :
https://m.dailyhunt.in/news/india/english/laughingcolours+english-epaper-laughcole/kargil+hero+now+runs+a+juice+shop+in+delhi-newsid-94536079
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