"काली" शब्द को आमतौर पर केवल काले रंग से जोड़ कर समझा जाता है, किन्तु देवी काली का वास्तविक अर्थ काले रंग से कहीं अधिक है | "काली" शब्द "काल" शब्द का स्त्रीलिंग शब्द है| "काल" शब्द भगवान् शिव का ही नाम है , जिन्हें हम महाकाल व् कालभैरव जैसे नामों से भी जानते हैं | काल का अर्थ "मृत्यु" व् "समय" होता है | भगवान् शिव केवल मृत्यु के देवता नहीं बल्कि त्रिकालदर्शी भी हैं, अर्थात वे भूत-भविष्य-वर्तमान को भी देख सकते हैं | भगवान् शिव की शक्ति ही "काली" हैं |
शक्ति ही जीव को प्राण देती है व् वही मृत्यु भी है | काली वह शक्ति है जो सृष्टि के उत्पन्न होने से पूर्व अन्धकार में भी व्याप्त थी और सृष्टि के अंत के पश्चात भी उसी घने काले अन्धकार में भी होगी | यूं तो काली सदा से हैं, और सदा रहेंगी , किन्तु उनके मूर्त रूप में आने के पीछे कई कथाएँ प्रचलित हैं |
दारुक वध कथा
दारुक नाम के असुर ने ब्रह्मा को प्रसन्न कर के वरदान लिया की उसका वध केवल किसी स्त्री के हाथों ही हो | यह वरदान उसने इस घमंड में लिया की कोई स्त्री भला कैसे उसका वध कर सकती है | इसके उपरान्त उसने देवताओं व् साधुओं पर अत्याचार करने प्रारंभ कर दिए | उसे मारने के लिए विष्णु और ब्रह्मा ने स्त्री रूप धरे किन्तु असफल रहे और अंत में भगवान् शिव के शरण में आये | भगवान् शिव ने देवी पार्वती से यह कार्य करने को कहा | तब देवी पार्वती ने अदृश्य रूप से अपना एक अंश भगवान् शिव के शरीर में प्रविष्ट करा दिया, और वह अंश उनके गले में एकत्र विष से अपना स्वरुप धारण करने लगा | जब भगवान् शिव को इसका आभास हुआ तो उन्होंने अपना तीसरा नेत्र खोल दिया , जिससे प्रचंड तेज के प्रवाह के साथ विकराल रूप धारी काली भी बाहर आई जिनका वर्ण काला था व् तीन नेत्र थे | काली का रूप इतना भयंकर था की देवता भी वह रूप देख कर भागने लगे | अपनी एक हुंकार मात्र से देवी काली ने दारुक व् उसकी सेना का संहार कर दिया | इसके पश्चात उनके क्रोध की अग्ने में समस्त संसार जलने लगा | उनको रोकने के लिए भगवान् शिव ने बालक रूप लिया व् शमशान में लेट कर रोने लगे | बालक रूप धरे शिव को देख कर काली में करुना जागृत हुई व् उन्होंने उस बालक को अपने ह्रदय से लगा कर दूध पिलाना शुरू कर दिया | भगवान् शिव इस प्रकार उनका सारा क्रोध पी गए व् माँ काली मुर्छित हो गयी | तब भगवान शिव ने तांडव कर के माँ काली होश में लाये व् माँ काली भी उनके साथ नृत्य करने लगी व् "योगिनी" भी कहलाई|
चंड-मुंड व् रक्तबीज वध
जब देवी दुर्गा चंड-मुंड नामक राक्षसों से युद्ध कर रही थी तब वे बहुत अधिक क्रोधित हो गयी और क्रोध के कारण उनका मस्तक काला पड़ने लगा | तब उनके मस्तक से काले वर्ण की व् अत्यंत डरावने स्वरुप वाली "काली" उत्पन्न हुई | उन्होंने चंड-मुंड का वध किया व् इसीलिए "चामुंडा" कहलाई | इसी युद्ध में उनका सामना रक्तबीज नामक राक्षस से हुआ, जिसके रक्त की हर बूँद में उस जैसे ही अन्य राक्षस उत्पन्न करने की ताकत थी | यह देख माँ काली अत्यंत क्रोधित हो गयी और सभी रक्तबीजों का भक्षण करने लगी | उसके रक्त की बूंदों को एक बड़े कटोरे में एकत्र कर के उसका भी रसपान करने लगी | अंत में रक्तबीज का वध करने पर भी काली का क्रोध शांत नहीं हो रहा था जिससे समस्त सृष्टि पर संकट के बादल मंडराने लगे | अतः भगवान् शिव स्वयं माँ काली के मार्ग में जा कर लेट गए | जैसे ही माँ काली का पैर भगवान् शिव की छाती पर पड़ा, तो वे झिझक कर रुक गयी क्योंकि उनके पति ही उनके चरणों के नीचे आ गए थे | इस प्रकार माँ काली का क्रोध शांत हुआ |
मधु कैटभ वध
भरवान विष्णु के कान के मैल से उत्पन्न हुए दो राक्षस मधु-कैटभ ब्रह्मा जी का वध करने का प्रयास करने लगे जिन्हें रोकने का सामर्थ्य उनमें न था | सोते हुए भगवान् विष्णु को जगाने के लिए ब्रह्मा जी ने "योगनिंद्रा" की उपासना शुरू करी | ये योग्निन्द्र ही महामाया हैं | जैसे ही भगवन विष्णु जागे तो उन्होंने तुरंत मधु कैटभ से युद्ध प्रारंभ कर दिया | तब भगवान् विष्णु की महामाया ने ही महाकाली का रूप धर के मधु कैटभ को वशीभूत किया व् विष्णु ने उनका वध कर दिया |
माँ काली के कई रूपों की उपासना करी जाती है जिनमें महाकाली, कालरात्रि, दक्षिण काली, दक्षिणा काली, भीम काली, भद्रकाली, श्यामा काली व् रक्षाकाली रूप प्रसिद्द हैं | गृहस्थ लोग वामकाली व् संहारकाली की उपासना नहीं करते | कई तांत्रिक साधनाओं में काली की बहुत मान्यता है |
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