खुद को सही साबित करने के दो तरीके होते हैं -
- पहला यह की कुछ अच्छे तर्कों के साथ अपनी बात बात को सही साबित किया जाए |
- दूसरा यह की सामने वाले को गलत साबित कर दिया जाए, भले ही वह गलत तर्कों से हो |
जब ज्ञानव्यापी में मिली आकृति को हिन्दू पक्ष शिवलिंग, और मुस्लिम पक्ष फव्वारा बता रहा था, तब कुछ लोगों ने बहुत सी अनाप-शनाप चीज़ों को शिवलिंग बता कर हिन्दू धर्म को मज़ाक उडाना शुरू कर दिया | हालांकि यह कोई नयी बात नहीं है | अपने अल्लाह को सही साबित करने के लिए ये लोग हमारी मूर्तियों को "बुत" और उन मूर्तियों के उपासकों को "बुतपरस्त" बोलते आ रहे हैं | हिन्दू ने कभी अल्लाह के अस्तित्व पर सवाल नहीं उठाया क्योंकि उस अल्लाह की व्याख्या हमारे "निराकार भगवान्" से मेल खाती है, जिसे हम निर्गुण परमात्मा या शून्य स्वरुप मानते हैं | किन्तु अपने अल्लाह को सही साबित करने के चक्कर में (जो करने की जरूरत है ही नहीं ), जब आप दूसरे के भगवान् को गलत साबित करने में लग जाते हैं, तभी आप गलत हो जाते हैं | रही बात शिवलिंग और फव्वारे की तो वो तय करने के लिए न्यायालय है | न्यायालय कोई धार्मिक संस्था तो है नहीं, इसलिए वो उचित तर्कों के आधार पर ही निर्णय लेगी |
किन्तु जब न्यायालय के बाहर आप खुद को सही साबित करने के लिए दुसरे पक्ष के भगवान् का मज़ाक उड़ायेंगे तो कभी न कभी सामने वाला भी जवाब दे सकता है | सामने वाले ने यदि आपके पैगम्बर के चरित्र के बारे में कुछ ऐसे तथ्य बोल दिए जिनसे आप सहमत नहीं हैं, तो आप अपने पैगम्बर के बारे में सही तथ्य बता कर सामने वाले को चुप कर सकते हैं | किन्तु अभी तक एक भी मुस्लिम स्कॉलर ने सही तथ्य बताने की ज़हमत नहीं उठायी, केवल जान से मारने और सर-कलम करने की बात कर रहे हैं | हमारे हिन्दू समाज में भी भगवान् के अस्तित्व और आकर को लेकर प्रश्न खड़े होते हैं, लेकिन उनका निराकरण शास्त्रार्थ के जरिये होता है, सर कलम करके नहीं |
बिना सवाल पूछे आप जवाब तक नहीं पहुच सकते | सवाल भी वही पूछ सकता है, जिसे थोडा बहुत पता हो, और जवाब वो दे सकता है जिसे थोडा ज्यादा पता हो | कोई भी तार्किक या ज्ञानी व्यक्ति अपने को सर्व-ज्ञाता नहीं मान सकता, क्योंकि उसे पता होता है की उसका ज्ञान इस सृष्टि और स्रष्टा के सामने एक तिनका भी नहीं है |
किन्तु एक व्यक्ति इसका ठीक उल्टा करता है | वह कहता हैं की मुझे सब पता है, मेरे पास एक किताब है जिसमें भूत-भविष्य सब की जानकारी है और मेरे जवाब पर कोई सवाल खड़ा नहीं हो सकता | और यदि कोई सवाल खड़ा करेगा तो वह मुर्ख है और उसे सजा मिलनी चाहिए | ऐसे व्यक्ति को आप क्या कहेंगे | मुर्ख या ज्ञानी ? अब मूर्ख कौन है और ज्ञानी कौन ये आप समझ सकते हैं |
हिन्दू देवी-देवताओं पर हम हिन्दू सदा से प्रश्न उठाते रहे हैं, जैसे राम ने सीता को क्यूँ त्याग दिया ? कृष्ण ने राधा से विवाह क्यूँ नहीं किया ? कृष्ण की सोलह हज़ार रानियाँ क्यूँ थी ? द्रोपदी ने पांच पांडवों से विवाह क्यूँ किया ? पांडवों ने अपनी पत्नी को एक वस्तु की तरह जूए में दांव पर क्यों लगा दिया ? राम यदि भगवान थे तो उन्होंने सीताहरण कैसे होने दिया ? सब ज्ञात होते हुए भी राम ने सीता की अग्निपरीक्षा क्यों ली ? ये प्रश्न सभी हिन्दुओं के मन में भी उठते हैं और पूछे भी जाते हैं और उसके उपरान्त ज्ञानी जन इनके तर्कसंगत उत्तर भी देते हैं , किन्तु प्रश्न पूछने मात्र से कोई व्यक्ति पापी नहीं बन जाता | प्रश्न पूछने से आपको उत्तर मिलने का अवसर उत्पन्न होता है, जिससे ज्ञान में वृद्धि होती है | हिन्दू तो भगवान् को भी कटघरे में खड़े करने का सामर्थ्य रखते हैं, फिर वो चाहे हमारे अपने धर्म के हों या दूसरे के | किन्तु कुछ धर्मों में असहिष्णुता इतनी ज्यादा होती है कि सवाल का जवाब देने के बजाय, सवाल पूछने वाले का सर-कलम करने की बातें करते हैं |
आज सम्पूर्ण भारत में नुपुर शर्मा के खिलाफ जो ज़हर उगला जा रहा है, वह देखने लायक है | और ये ज़हर उगलने वाले ज़्यादातर कम उम्र के "तथाकथित बच्चे" हैं | ये बच्चे वो हैं जो स्कूल भले ही न जाए किन्तु मदरसा और मस्जिद में अवश्य जाते हैं, इन्होने दसवी भले ही पास न करी हो किन्तु smartphone अच्छे से चलाना जानते हैं, इन्हें भाषा का ज्ञान भले ही न हो किन्तु अपशब्दों का पूरा है , इन्हें बातों से जवाब देना भले ही न आता हो किन्तु पत्थर फेंकना अच्छे से आता है | इनके पत्थर से कोई पुलिस वाला मर जाए तो कोई बात नहीं, किन्तु यदि इन्हें चोट लग जाए तो मानवाधिकार का हनन हो जाता है |
"ख़ुदी को कर बुलंद इतना कि हर तक़दीर से पहले , ख़ुदा बंदे से ख़ुद पूछे बता तेरी रज़ा क्या है " | इकबाल के इस शेर को सभी ने सुना होगा, लेकिन फिर भी खुद पढ़ लिख कर किसी बुलंदी को हासिल करने के बजाय कुछ लोग दूसरे को नीचा दिखा कर ऊपर उठने में यकीन रखते हैं |
आज हमें जरूरत है की अपने बच्चों को वो शिक्षा दें जिससे उनमें एक-दुसरे के धर्म के प्रति आदर और समझने का भाव उत्पन्न हो | वो शिक्षा यदि स्कूल में न मिले तो घर पर दें, और उसे अपनी भी ज़िन्दगी का एक अंग बनाएं | एक पीढ़ी को यदि ढंग से सुधार दिया जाए तो इस धार्मिक उन्माद को सदा के लिए ख़त्म किया जा सकता है, किन्तु कुछ लोग हैं जो ऐसा होने देना नहीं चाहते | हमें उन लोगों से भी अगली पीढ़ी को बचा के रखने की ज़रुरत है | धर्मांध लोग हर धर्म में मिलते हैं, किसी में कम तो किसी में ज्यादा , लेकिन खतरनाक ये दोनों हैं | अंत में केवल इनता कह कर पूर्णविराम लूँगा की एक तीली पूरे जंगल में आग लगा सकती है, वो तीली आपके शब्द भी हो सकते हैं और आपके कृत्य भी, इसलिए सोच समझ कर बोलें और बेकार समय बर्बाद करने के बजाय कुछ अच्छी पुस्तकें पढ़ें |
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