स्वप्नो विकल्पाः [शिव सूत्र : 1 - 9]
यह शिव सूत्र के प्रथम अध्याय का नौवां सूत्र है |शाब्दिक अर्थ : विकल्प ही स्वप्न हैं |
भावार्थ : विकल्प वह स्तिथि है जो हो सकती थी किन्तु हुई नहीं | विकल्प भविष्य और भूत दोनों के सन्दर्भ में हो सकते हैं | हमारे मन अथवा चित्त में ये विकल्प सदा रहते हैं | सोते समय यही हमें स्वप्न के रूप में दिखते हैं, किन्तु यदि आप यह सोचते हैं की दिन में जाग्रत अवस्था में आप इन स्वप्नों से दूर हो जाते हैं तो यह आपका भ्रम है | दिन में भी हम ज़्यादातर समय भूत अथवा भविष्य के सन्दर्भ में ही सोचते हैं | रात के समय हमारे मन में मौजूद विकल्प ही मूर्त रूप में स्वप्न के रूप में दिखते हैं | कभी यह स्वप्न हमारे भय से प्रेरित होते हैं, तो कभी प्रेम से, तो कभी वासना से , कभी बीते हुए कल से, तो कभी आने वाले कल से |
रात के समय जो तारे आपको आकाश में दिखते हैं, वे दिन में भी वहीँ होते हैं, किन्तु सूर्य के प्रकाश में धूमिल होकर नहीं दिखते| यदि आप एक गहरे कूए में उतर कर आकाश में देखें तो वह आपको दिन में भी दिख जायेंगे | ठीक इसी प्रकार आप सदैव स्वप्न अर्थात विकल्पों में रहते हैं | आपकी जाग्रत अवस्था भी सदा स्वप्नावस्था से ही घिरी रहती है |
ये विकल्प सत्य नहीं हैं किन्तु फिर भी सदैव आपको उलझाए रखते हैं | हमारे जीवन का अधिकतर समय इन्ही स्वप्नों में व्यतीत होता है | नीद में तो आप इस स्वप्नों से नहीं बच सकते किन्तु दिन में अपनी जाग्रत अवस्था को अधिक जाग्रत बनाने का प्रयत्न अवश्य कर सकते हैं | इन विकल्पों से बच कर आप वर्तमान में अधिक रह सकते हैं, और स्वयं के भीतर उस दृष्टा का अनुभव कर सकते हैं जो आपको तुर्यावस्था की राह पर ले जाए |
यह इतना सरल भी नहीं है, जितना प्रतीत होता है | आप अपने मन को एक सेकंड के लिए भी विचार शून्य नहीं कर सकते, पूरे दिन की तो बात बहुत कठिन है | मन को विचार शून्य करने की शक्ति मन्त्र में होती है, जिसके बारे में आगे आने वाले सूत्रों में चर्चा होगी |
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