ज्ञानं जाग्रत् [शिव सूत्र : 1 - 8]
यह शिव सूत्र के प्रथम अध्याय का आठवा सूत्र है |शाब्दिक अर्थ : ज्ञान का बना रहना ही जाग्रत अवस्था है |
भावार्थ : साधारण जाग्रत अवस्था तक हम नींद से उठने पर पहुँच जाते हैं, किन्तु पूर्ण जाग्रत अवस्था तक हमें केवल हमारा ज्ञान पहुंचा सकता है | शिव सूत्र के प्रथम अध्याय के दूसरे सूत्र के अनुसार "ज्ञानं बन्धः" अर्थात ज्ञान बंधन है, किन्तु यही ज्ञान हमें उस बंधन से मुक्त कर के पूर्ण जागृति तक पहुचाने का सामर्थ्य भी रखता है | पूर्ण जाग्रत अवस्था केवल शरीर का जागरण नहीं है, अपितु हमारे अंतर्मन, आत्मा व् चेतना का जागरण है | हमारा ज्ञान हमें केवल भौतिक जगत का बोध नहीं कराता, ज्ञान हमें स्वयं को पहचानने का अवसर भी देता है |
हमारा सारा ज्ञान हमारी इन्द्रियों द्वारा एकत्र किया गया होता है, इन्द्रियां हमें बहुत कुछ देखने और समझने में मदद करती हैं, किन्तु उनकी भी एक सीमा होती है | हमारा ज्ञान ही हमें यह समझने में मदद करता है कि कुछ है जो इन इन्द्रियों से परे है |
उदाहरण के तौर पर हम मैग्नेटिक तरंगों को महसूस नहीं कर सकते, इसलिए बिना आँखों की मदद लिए हम दिशाओं का ज्ञान नहीं पा सकते| किन्तु कुछ पक्षियों और मछलियों में चुम्बकीय तरंगों को अनुभव करने वाली एक विशेष इंद्री होती है, जिसकी मदद से वे बिना भटके हजारों मील का सफ़र हर साल तय करते हैं | मनुष्यों के पास वह इंद्री नहीं है, किन्तु अब यह ज्ञान है कि कुछ ऐसी भी इन्द्रियां हो सकती है जिनसे हमारे इस सृष्टि को समझने का नजरिया बदल सकता है |
हमारा शरीर, इन्द्रियां और ज्ञान एक बंधन अवश्य है , किन्तु यह ज्ञान ही हमें यह अनुभव कराता है की कुछ है जो ज्ञान से भी परे है | हमारा यह बोध ही हमारी जाग्रत अवस्था को पूर्ण जाग्रत बनाता है, और तुर्यावस्था की यात्रा को आरम्भ करता है | बिना ज्ञान के हमें यह बोध नहीं हो सकता की ज्ञान एक बंधन है |
यदि एक निर्धन व्यक्ति यह कहे की वह अपना सारा धन दान कर देगा क्योंकि उसे बोध हो गया है की धन कुछ नहीं है , तो उसकी बात आपको निरर्थक लगेगी | किन्तु यदि एक बहुत अमीर आदमी यही बात कहे तो उसकी बात में कुछ वज़न होगा | इसी प्रकार एक ज्ञानी पुरुष यदि ज्ञान को त्याग कर ज्ञान से परे जाने की बात करे तो समझ जाना की वह तुर्यावस्था तक जाने की बात कर रहा है, किन्तु यदि एक अज्ञानी व्यक्ति यह कहे की ज्ञान एक बंधन है, इसलिए उसने उसे प्राप्त करने की कोशिश ही नहीं करी, तो समझ जाना की अंगूर खट्टे थे |
ज्ञान आपको सही अर्थों में जाग्रत बनाता है | हमारा ज्ञान ही हमारी जाग्रत अवस्था को पूर्णता प्रदान करता है, और इसके बाद ही तुर्यावस्था का मार्ग प्रारंभ होता है |
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