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धुम्रपान और शराब को बढ़ावा क्यों ?

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आज के दौर में हमारी नौजवान पीढ़ी को जो चीज़ सबसे ज्यादा बीमार और लाचार बना रही है, वो चीज़ है शराब और धुम्रपान | हमारी सरकारें एक तरफ तो शराब और सिगरेट के पैकेट्स पे वैधानिक चेतावनी लिखवाती हैं और दूसरी तरफ हमारा फिल्म सेंसर बोर्ड ऐसे गानों को पास करता है जो धुम्रपान और शराब को बढ़ावा देते हैं |

"चार बोतल वोडका" और "मैं अल्कोहलिक हूँ" , ये दो ऐसे गाने हैं जो पूरी तरह शराब के ऊपर ही हैं , एक एक पंक्ति शराब के ऊपर | पर कोई  फर्क नहीं पड़ता | जिसे सुनना हो सुने , जिसे न सुनना हो न सुने (आख़िरकार ये एक आज़ाद मुल्क है) | पर हमारी सरकार को इसे ठन्डे बसते में नहीं डालना चाहिए | ये चीज़ें सिर्फ इन्हें पीने वालों को खतरे में नहीं डालती बल्कि उन लोगों को भी डालती हैं जो अनजाने में इनका शिकार होते हैं |


एक बीडी-सिगरेट पीने वाला इंसान घर के बाहर सिगरेट नहीं पीता , क्योंकि वहां रोक है | पर घर लोटते ही वो सारी कसर पूरी करता है | घर में उसके परिवार के अन्य सदस्य भी उस धुएं का शिकार होते हैं , खास तौर पे बच्चे और बूढ़े | उन बच्चों और बूढों को कौन बचाएगा | खुद पीने वाला तो बचाएगा नहीं | दूसरी तरफ एक ज्यादा पीने वाला इंसान पी कर उलटी सीढ़ी हरकतें करता है , नशे की आड़ में लडकियां छेड़ता है , अपनी दिन भर की भड़ास अपनी पत्नी पर निकलता है, या नशे में गाडी चला कर किसी का एक्सीडेंट कर देता है | ये सभी चीज़ें उस इंसान से ज्यादा दूसरों को नुक्सान पंहुचा रही हैं | कुछ इंसान तरीके से अपने ही घर में भी पीते हैं, पर उनकी संख्या काफी कम है |

पीने वाले अपनी दलीलें जरूर देंगे , आखिर हर इंसान की अपनी ज़िन्दगी है | पर जिस देश में आत्म हत्या एक जुर्म है वहां धुम्रपान और शराब वैध क्यों | जो चीज़ किसी को इतना बीमार कर सकती है की वो इंसान अपनी जान से ही हाथ धो बैठे, और खुद अपनी ही नहीं दूसरों की जान को भी खतरे में डाले, क्या ऐसी चीज़ पे प्रतिबन्ध नहीं लगना चाहिए |

भ्रान्ति : मैंने कुछ लोगों से सुना है की शराब पीने से शरीर में गर्मी आती है |
सत्य : बर्फीले इलाकों में रहने वाले अगर ये कहें तो सही लगता है पर हिन्दुस्तान में ऐसे इलाके काफी कम हैं | रही बात गर्मी की, वो तो थोडा सा दौड़ने से या दंड बैठक लगाने से भी आ जायेगी, साथ ही आपकी सेहत भी बनी रहेगी | अगर पीना है तो दूध पियो और बादाम और छुआरे खाओ ! खूब गर्मी आएगी !

भ्रान्ति : सिगरेट पीने के बाद मैं ठीक से सोच पता हूँ और अगर न पियूं तो सिरदर्द होता है |
सत्य : ऐसा आपको इसलिए प्रतीत होता है क्योंकि आप इसके आदी हो गए हैं | जैसे आदत लग सकती है, वैसे ही छूट भी सकती है , सिर्फ द्रढ़ इच्छा शक्ति चाहिए | कई लोग ऐसा ही चाय के साथ भी अनुभव करते हैं | अगर किसी दिन टाइम पे चाय न मिले तो सिर दर्द शुरू हो जाता है | ऐसा कुछ नहीं है की चाय या बीडी-सिगरेट सिर दर्द ठीक करती हैं |

सरकार धुम्रपान और शराब पे पूरी तरह रोक क्यों नहीं लगाती ?

क्योकि इससे सरकार को टैक्स की प्राप्ति होती है | अगर इस टैक्स की प्राप्ति नहीं होगी तो हमारे सरकारी बजट का एक अहम् हिस्सा कट जाएगा |
दूसरा रोक न लगाने का कारण है उन कंपनियों के मालिक जो ये चीज़ें बनाते हैं और अपने रुतबे और पैसे के बल पे रोक लगने नहीं देते |  (क्या एक इंसान की कमाई के लिए देश को गड्ढे में डालना उचित है)

एक तरफ जहाँ हम स्वच्छ भारत का निर्माण कर रहे हैं वही दूसरी तरफ कुछ लोग इस धुएं से वायु को प्रदूषित कर रहे हैं और कुछ शराब पी कर समाज को अपवित्र कर रहे हैं |

उपाय 

  • यदि सरकार इन चीज़ों पे प्रतिबन्ध नहीं लगा सकती, तो इनको इतना महँगा तो कर सकती है की हमारे समाज का एक बड़ा तबका इन्हें न खरीद पाए .
  • सिगरेट और शराब के विज्ञापनों पर भी रोक लगनी चाहिए |
  • बॉलीवुड के कलाकारों और क्रिकेटरों को भी इन चीज़ों के विज्ञापन नहीं करने चाहिए | क्या पैसा कमाने के लिए समाज को गर्त में डालने सही है | कलाकारों और क्रिकेटरों के पास तो कमाई के न जाने कितने तरीके हैं , कम से कम वही काम करें जिनसे समाज को नुक्सान न पहुंचे | अगर खुद उनके बच्चे इन नशीली चीज़ों के आदि हो जाएं, तो क्या ये उन्हें सही लगेगा |
  • उन व्यापारियों को भी अपने गिरेबान में झांकना चाहिए जो ये ज़हर समाज को बेच रहें हैं | उनका कोई तो धर्म होगा | पैसा कमाने के बहुत तरीके हैं , पर कोई ऐसा तरीका नहीं अपनाना चाहिए जिससे आपको किसी की बददुआ मिले | आखिर ये समाज और देश भी आपका ही है | अपनी जेब भरने के लिए देश को खोखला करना कहाँ तक उचित है |
  • एक अच्छे नागरिक का भी ये कर्त्तव्य है की वो खुद भी इन बुरी आदतों से दूर रहे और उसके जो साथी इन आदतों का शिकार हैं उन्हें भी सही सलाह दे | सामाजिक जागरूकता इस गन्दगी को साफ़ करने करने के लिए भी बहुत जरूरी है |

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