आज कल आप लोग अक्सर गठबंधन की सरकारें देखते हैं | कभी केंद्र में तो कभी राज्यों में | इसे भारतवर्ष का सौभाग्य ही कहिये की २०१४ में केंद्र में ऐसी सरकार आई जो बिना गठबंधन के, अपने बलबूते पे खड़ी हुई है. पर हर राज्य को तो ऐसा सौभाग्य प्राप्त नहीं हो सकता |
जब भी हम कहीं गठबंधन की सरकार बनते हुए देखते हैं , तो पहले दलों की आपसी बातचीत का दौर चलता है | ये बातचीत आखिर होती किस बात पर है ? पुराने समय में तो ये बातें कब होती थी इसका मीडिया को पता भी नहीं चलता था | पर अब तो लोकतंत्र का सौभाग्य कहिये की मीडिया हमें पहले ही बता देता है की किस दल को कौनसे पद की लालसा है | सब दल बैठ के सबसे बड़े दल के नेता के सामने अपनी मंत्रिपद की सूची रख देते हैं , और कहते हैं की इससे कम पे हम समर्थन नहीं देंगे | अब बेचारा बड़े दल का नेता मजबूर सा साथी दलों के बीच मंत्रीपदों का बटवारा करता है | हालांकि कुछ पद वो अपने नेताओं के लिए भी बचाता है |
आपको क्या लगता है ? क्या मंत्रिपद के लालच से समर्थन देने वाले दल , या मंत्री पद का लालच दिखाकर समर्थन लेने वाले दल सही काम कर रहे हैं ?
मेरे हिसाब से तो ये सरासर भ्रष्टाचार है | क्या मंत्रिपद पा कर ही कोई ऍम.पी या ऍम.एल.ए अपने क्षेत्र का विकास कर सकता है ? पद का लालच तो भ्रष्टाचार को जन्म देता है | भ्रष्टाचार से ही राजनीतिक दल अपने लिए चंदा इकठ्ठा करते हैं | हमारे देश में शायद ही कोई ऐसा दल हो जो सिर्फ अपनी नीतियों के दम पे चुनाव प्रचार के लिए चंदा इकठ्ठा करता हो | आज के दौर में हर दल अपने आपको भ्रष्टाचार विरोधी बताता है , और जब सरकार बनाने की बात आती है तो स-शर्त समर्थन देने के लिए तैयार होते हैं. और शर्त होती है मंत्रिपद की | इसके पीछे एक सामान्य सा कारण है, ऍम.पी या ऍम.एल.ए की एक निर्धारित तनख्वाह होती है , और कुछ निर्धारित रकम उसे अपने क्षेत्र के विकास के लिए मिलती है | किन्तु एक मंत्री के पास कमाई के अनगिनत तरीके होते हैं | एक मंत्री खुद भी कमाता है और अपने दल के लिए चंदा भी इकठ्ठा करवाता है, जो अगले चुनाव में काम आएगा | आपने जितने भी घोटालों के बारे में सुना होगा वो सभी किसी न किसी मंत्री की सरपरस्ती में ही घटित होते हैं, क्योंकि हर मंत्रालय के अंतर्गत अनगिनत सरकारी दफ्तर आते हैं, जहाँ पे घोटालों की नीव रख्खी जा सकती है | कोई भी अक्लमंद इंसान यह साधारण सी बात समझ सकता है |
आज जब केंद्र में एक सशक्त सरकार है तो क्या वो एक ऐसा कानून नहीं बना सकती जिससे हर मंत्रिपद के लिए कुछ योग्यता निर्धारित हो सके | क्या एक दसवी पास मंत्री से आप ये उम्मीद कर सकते हैं की वो एक मंत्रालय का कामकाज संभाल लेगा | एक अयोग्य मंत्री केवल अपने अधीनस्थ कर्मचारियों के बल बूते पे ही काम कर पायेगा, और कोई कठोर निर्णय भी नहीं ले पायेगा | बल्कि उस योग्य मंत्री के मन में केवल पद से लाभ उठाने का ही विचार आएगा , और वो भ्रष्टाचार में ही लिप्त रहेगा | उसके भ्रष्टाचार में लिप्त होने का कारण ये भी होगा की उसे पता होगा की वो अयोग्य है और केवल किस्मत और चालाकी के बलबूते पे इस पद तक पंहुचा है, इसलिए अपने कार्यकाल के दौरान ज्यादा से ज्यादा कमाने की कोशिश करेगा | (अगली बार मौका मिले न मिले !)
यदि मंत्रिपद के लिए कुछ योग्यता निर्धारित कर दी जाए तो मंत्रिपदों की बंदरबांट भी समाप्त हो जाएगी | किसी बड़े मंत्री पद (जैसे गृह , वित्त , विदेश ) के लिए योग्यता में कुछ छोटे मंत्रालयों का अनुभव भी जरूरी होना चाहिए | एक प्रधान मंत्री या चीफ मिनिस्टर किसी ऐसे योग्य व्यक्ति को भी मंत्री बना सकते हैं जो ऍम.पी या ऍम.एल.ए न हो , पर वो बनाते नहीं , क्योंकि ये पद ही तो दलों के काम आते हैं | भारत वर्ष के प्रधानमंत्री के पद पर १० साल तक रहने वाला एक ऐसा शख्स था जो नेता नहीं था , पर एक पार्टी उसे योग्य व्यक्ति समझती थी |
आज भारत का प्रधानमंत्री एक योग्य व्यक्ति प्रतीत होता है | सारा देश उससे उम्मीद लगाये बैठा है की वो इस देश की तस्वीर बदलेगा | हम उस योग्य प्रधानमंत्री से सिर्फ इतनी कामना करते हैं की वो ये बंटवारे वाली राजनीति ख़तम करेगा और कुछ ऐसा कानून बनाएगा की कोई और भी ऐसा न कर सके |
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