ज्ञानाधिष्ठानं मातृका [शिव सूत्र : 1 - 4]
यह शिव सूत्र के प्रथम अध्याय का चौथा सूत्र है |शाब्दिक अर्थ : ज्ञान अर्थात सांसारिक वस्तुओं की जानकारी जिसकी एक सीमा है | अधिष्ठानं का अर्थ जिसके अधीन रह कर कोई कार्य किया जाए | मातृका शब्द के कई अर्थ हैं - जननी, सौतेली माँ, माँ जैसी, ठोड़ी की आठ विशिष्ट नसें , स्वर और संस्कृत भाषा (जो सब भाषाओँ की जननी है ) | संसार में प्राप्त ज्ञान ही हमें अपने अधीन रखता है , और वही हमारे मुख से भाषा के माध्यम से निकलता है |
भावार्थ : हम जब से इस संसार में जन्म लेते हैं केवल इस संसार का ही ज्ञान प्राप्त करते हैं | हम सभी जाने अनजाने इस ज्ञान के अधीन अपना जीवन व्यतीत करते हैं | यही ज्ञान शब्दों के माध्यम से हमारे मुख से निकलता है |ज्ञानाधिष्ठानं का अर्थ बड़ा गहरा है, हमारा ज्ञान ही हमारे सभी कर्मों का स्रोत है| यह ज्ञान ही हमारा आधार है, यही हमें अपने वशीभूत रखता है , और हम इस भ्रम में जीते हैं की हम स्वतन्त्र हैं | सांसारिक ज्ञान की एक सीमा है | संसार का कोई भी ज्ञान शिव को व्यक्त करने में असमर्थ है | हमारी भाषाएँ भी उसे व्यक्त नहीं कर सकती | संस्कृत जैसी पौराणिक भाषा, जिससे सब भाषाएँ उपजी हैं, वह भी हमारे सांसारिक ज्ञान के अधीन हो कर रह जाती है | दो व्यक्ति एक ही चीज़ को अलग-अलग ढंग से देखते हैं और व्यक्त करते हैं , क्योंकि उनका ज्ञान अलग-अलग है , उनका नजरिया अलग-अलग है |
मातृका शब्द भी बहुत गहरा है | इसके बहुत से अर्थों में एक "स्वर" भी है | पौराणिक मान्यताओं के अनुसार ये समस्त संसार और ब्रह्माण्ड स्वर से ही उत्त्पन्न हुआ है | स्वर की तरंगें ही समस्त अणुओं और पदार्थों को आकर देती हैं | हम सभी इन्ही स्वर तरंगों से निर्मित हैं | इसीलिये हमारे वेदों में परमात्मा को "नादब्रह्म" भी कहा गया है | नाद एक ऐसा स्वर है जो ब्रह्माण्ड उत्त्पत्ति से पहले भी था और इसके बाद भी रहेगा | समस्त ग्रह, उपग्रह, तारे, वायु, जल, जीव और जीवन इसी नाद का विस्तृत स्वरुप है | हमारे समस्त ज्ञान में यही नाद विद्यमान है, और हमारे समस्त बोले गए शब्दों में भी यही नाद (स्वर) है |
अगर हम वैज्ञानिक दृष्टिकोण से देखें तो संसार की सबसे छोटी इकाई अणु (Atom) है | इस Atom में बीच में एक Nucleus है, जिसके चारों तरफ electrons चक्कर काटते हैं | ये इलेक्ट्रान कोई तत्व नहीं बल्कि तरंग हैं, जैसे स्वर एक तरंग है |किसी तरंग को एक सीधी रेखा में व्यक्त नहीं किया जा सकता | इस प्रकार इलेक्ट्रान भी सीधे नहीं चलते , बल्कि एक तरंग की तरह ऊपर नीचे होते हुए चलते हैं | Nucleus के भीतर मौजूद proton और neutron भी तरंगों से ज्यादा कुछ नहीं हैं | एक Atom के भीतर तुलनात्मक रूप से अनंत space होता है | Nucleus और electron का आकर उसके Atom की तुलना में कुछ भी नहीं होता | एक Atom की कोई बाहरी दीवार भी नहीं होती | इसलिए एक Atom एक बहुत बड़े स्पेस में घुमती हुई बहुत सारी छोटी छोटी तरंगों का समूह है| इसे यदि एक स्वर तरंग कहा जाए तो कुछ गलत नहीं है | समस्त ब्रह्माण्ड इन्ही छोटे छोटे अणुओं से बना है, जो स्वयं एक तरंग है | हम सभी इन्ही स्वर तरंगों का एक बड़ा समूह हैं |
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