उद्यमो भैरवः [शिव सूत्र : 1 - 5]
यह शिव सूत्र के प्रथम अध्याय का पांचवा सूत्र है |शाब्दिक अर्थ : उद्यम अर्थात एक सार्थक प्रयास | भैरव - शिव का एक रूप जो अत्यंत भयानक है | इस सूत्र का शाब्दिक अर्थ यह है की एक आध्यात्मिक सार्थक प्रयास से ही हम भैरव स्वरुप को समझ सकते हैं |
भावार्थ : शिव सूत्र का हर सूत्र अपने से पिछले और अगले सूत्र से जुड़ा हुआ है | पिछले सूत्र में ये बताया गया था की यह सांसारिक ज्ञान केवल स्वर है, जो हमें जीवन भर अपने नियंत्रण में रखता है | इस सूत्र में थोडा आगे बढ़कर एक सार्थक प्रयास करने की बात कही गयी है , जिससे हम इस माया से मुक्त हो कर उस भैरव स्वरुप को जान सकें | भैरव संहार करते हैं | इसीलिये शिव को काल भैरव भी कहा गया है | वे संहार के देवता हैं | हर जीव और वस्तु की एक आयु है , उसके बाद उसकी मृत्यु या संहार निश्चित है | जो इस मृत्यु को समझ गया , उस भैरव को समझ गया , वही सांसारिक ज्ञान (जो माया है ) से मुक्त हो सकता है | उस भैरव का जानना इतना सरल भी नहीं है | जो सार्थक प्रयास इस भैरव को जानने के लिए करना पड़ता है , वह असाधारण है | कुछ लोग केवल मृत्यु भय से मुक्ति के लिए भैरव की उपासना करते हैं |
इस सूत्र में उद्यम का अर्थ समझना भी महत्वपूर्ण है | कुछ लोग उद्यम को श्रम समझ बैठते हैं, जबकि ये दोनों अलग हैं | श्रम तो शरीर से किया जाता है , जिस प्रकार एक श्रमिक करता है | उद्यम श्रम से श्रेष्ठ है , क्योकि वह सम्पूर्ण चित्त के साथ किया जाता है , और तब तक किया जाता है जब तक सफलता न मिल जाए |
उद्यम को शिव की प्रार्थना समझने की भूल भी न करें | प्राथना भी अक्सर खुद को छलने का तरीका बन जाती है | कुछ लोग तो प्रार्थना भी ऐसे करते हैं जैसे परमात्मा पे उपकार कर रहे हों | कुछ लोगों का प्रार्थना का उद्देश्य केवल माँगना होता है | कुछ लोग ऐसी प्रार्थना करते हैं जैसे परमात्मा को उसकी गलती बता रहें हों , की हम अच्छा आचरण करते हैं फिर भी हम पर कोई उपकार नहीं करते और हमारे दुष्ट पडोसी पर आपने बेवजह कृपा बरसाई हुई है | ऐसी प्रार्थना उद्यम की श्रेणी में नहीं आती , यह तो केवल व्यापार समझ आती है | उस शिव, उस भैरव को जानने के लिए कोई ध्यान नहीं लगाता, न ही ये कहता है की हे प्रभु हमें अपने स्वरुप से अवगत कराएं | उद्यम तो वह तब है जब आप कृतज्ञ हो कर प्रार्थना करें और उस शिव को जानने के लिए ध्यान लगायें |
पूर्ण समग्रता से उद्यम के बिना उस भैरव को नहीं जाना जा सकता |
मृत्यु को सबसे बड़ा सत्य बताया गया है | भैरव को जानना अर्थात मृत्यु को जानना, जो इस संसार का सबसे बड़ा सत्य है | जिस दिन हम मृत्यु को समझ गए, उस दिन हम उस भैरव के निकट पहुच गए |
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