ज्ञानं बन्धः [शिव सूत्र : 1 - 2]
यह शिव सूत्र के प्रथम अध्याय का दूसरा सूत्र है |
शाब्दिक अर्थ : ज्ञान बंधन है |
भावार्थ : इस सूत्र में भगवान् शिव ज्ञान को एक प्रकार का बंधन बता रहे हैं | ज्ञान भौतिक भी होता है और अध्यात्मिक भी | यहाँ भौतिक ज्ञान को बंधन बताया गया गया है | यह भौतिक ज्ञान जिसे हम विशेष-ज्ञान या विज्ञान समझते है, एक प्रकार का बंधन है, जो हमें अपनी वास्तविकता (हमारी आत्मा ) को जानने से रोकता है | एक साधारण मनुष्य समझता है की विज्ञान को समझ कर वो सम्पूर्ण सृष्टि को समझ सकता है , जो केवल एक भ्रम है | ये वैसा ही है की कोई पुरुष किसी स्त्री के शरीर की पूरी जानकारी एकत्र कर के, या उसके शरीर के साथ सम्बन्ध स्थापित करके ये सोचे की उसने उसे पा लिया | जबकि पाने का असली अर्थ तो उसके प्रेम को पाना है | शरीर तो एक बलात्कारी भी पा लेता है , किन्तु प्रेम नहीं | इसी प्रकार ज्ञान हमें इस सृष्टि के चलने के नियम बता सकता है, ग्रुत्वाकर्षण और अनंत ब्रह्माण्ड की तसवीरें दिखा सकता है, किन्तु उस सृष्टा से जो हमारी आत्मा में बसा हुआ है, उस से अवगत नहीं करा सकता | भौतिक ज्ञान हमें Extrovert (बहिर्मुखी) बनाता है और हम अपने अन्दर झांकने की कभी कोशिश ही नहीं करते | हम कभी अपने अपने मन को जानने की कोशिश ही नहीं करते, आत्मा की तो बात ही छोड़ दीजिये | बाहर का ज्ञान हमें आकर्षित करता है और उलझाये रखता है | जिस प्रकार सृष्टि का कोई अंत नहीं है , उसी प्रकार इस ज्ञान का भी कोई अंत नहीं है | जिस पल हम ये समझ जाते हैं की ये ज्ञान ही बंधन है , उसी पल से हम अपने और उस सृष्टा के और निकट हो जाते है | ज्ञान बंधन अवश्य है किन्तु ये बंधन भी उसी शिव का बनाया हुआ है | इस अनंत विज्ञान का कुछ हिस्सा जानने के बाद ही हमें ये अनुभूति हो सकती है की ये ज्ञान बंधन है |
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