चैतन्यमात्मा [शिव सूत्र 1 - 1 ]यह शिव सूत्र के प्रथम अध्याय का प्रथम सूत्र है |
शाब्दिक अर्थ : चैतन्य ही आत्मा है | चैतन्य अर्थात हमारे मन की जाग्रत अवस्था |
भावार्थ : इस सूत्र में भगवान शिव ने आत्मा शब्द का अर्थ बताया है | ज्यादातर हिन्दू इस तथ्य से अवगत हैं की हमारे शारीर के भीतर एक आत्मा विद्यमान है | किन्तु उस आत्मा को जानने का अवसर कुछ जाग्रत मनुष्यों को ही मिलता है | एक साधारण मनुष्य केवल अपने मन और शरीर से ही बंधा रहता है | हमारा मन हमें वासनाओ से ग्रसित रखता है | ये वासना किसी वस्तु को पाने की , किसी का प्यार पाने की , किसी का शरीर पाने की या किसी अन्य भौतिक सुख को पाने की हो सकती है | हमारा मन ही हमें हमारी आत्मा तक पहुचने से रोकता है , क्योंकि वो जाग्रत अवस्था जिसमें हमें हमारी आत्मा की अनुभूति होती है , वो अवस्था हमारे मन के पार जा कर ही हो सकती है | आसन शब्दों में, हमारी आत्मा हमारे मन का ही जाग्रत स्वरुप है | जब एक व्यक्ति जाग्रत अवस्था में पहुचता है, तो उसका मन उसे नहीं चला सकता , बल्कि उसका मन उसके अनुसार चलता है | जाग्रत होने के पश्चात् हमारा मन रह ही नहीं जाता , जो रहता है वो केवल जाग्रत आत्मा है |
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