"गायत्री मंत्र" शास्वत धर्म (हिन्दू धर्म) के सर्वाधिक प्रसिद्ध मन्त्रों में से एक है , इसी लिए इसे महामंत्र की उपाधि भी दी गयी है | गायत्री मंत्र के इतने प्रसिद्ध होने के पश्चात भी कई लोग या तो इसका सही उच्चारण नहीं करते या उनके मंत्र में ही कुछ त्रुटी होती है | यदि आप केवल इस मंत्र को सुनना चाहते हैं तो नीचे दिए गए Audio Player पर अपनी पसंद की ध्वनि में सुन सकते हैं |
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सामान्य रूप में संध्या वंदना में जिस गायत्री मंत्र का प्रयोग किया जाता है वह ऋषि विश्वामित्र रचित गायत्री मंत्र है , जो इस प्रकार है |
ॐ भूर् भुवः स्वः। तत् सवितुर्वरेण्यं। भर्गो देवस्य धीमहि। धियो यो नः प्रचोदयात् ॥
अर्थ : उस प्राणस्वरूप, दुःखनाशक, सुखस्वरूप, श्रेष्ठ, तेजस्वी, पापनाशक, देवस्वरूप परमात्मा को हम अपनी अन्तरात्मा में धारण करें। वह परमात्मा हमारी बुद्धि को सन्मार्ग में प्रेरित करे।
गायत्री मंत्र के अक्षर
इस मंत्र में "ॐ भूर् भुवः स्वः" को यजुर्वेद से लिया गया है | इसे गायत्री मन्त्र की तीन व्यहृति भी कहा जाता है |
ॐ को अपने आप में एक पूर्ण मंत्र माना जाता है , "भूर् भुवः स्वः" को ऋग्वेद,यजुर्वेद व् सामवेद का निचोड़ माना जाता है | इसमें भू: अर्थात भूलोक, भुव: अर्थात अन्तरिक्ष लोक और स्व: अर्थात स्वर्गलोक है |
गायत्री मंत्र का बाकी का हिस्सा "तत् सवितुर्वरेण्यं। भर्गो देवस्य धीमहि। धियो यो नः प्रचोदयात्" ऋग्वेद के छन्द 3.62.10 से लिया गया है | इसे ब्रह्म गायत्री भी कहा जाता है | ऋग्वेद में सात प्रसिद्ध छंद हैं, जिनमें से यह गायत्री छंद है | इसमें आठ-आठ अक्षरों के तीन चरण होते हैं |
- प्रथम चरण :1) तत् 2)स 3)वि 4)तुर 5)व 6)रे 7)नि 8)ण्यं
- द्वितीय चरण: 1) भर 2)गो 3)दे 4)व 5)स्य 6)धी 7)म 8)हि
- तृतीय चरण: 1)धि 2)यो 3)यो 4)नः 5)प्र 6)चो 7)द 8)यात्
प्रथम चरण में अक्षरों की सही संख्या सात है, किन्तु संधि-विच्छेद करते समय सातवाँ अक्षर "नि" गिना जाता है, जो उच्चारण में प्रयोग नहीं होता | इस प्रकार प्रथम चरण में भी आठ अक्षर ही होते हैं |
"तत् सवितुर्वरेण्यं", इस मंत्र में सवितृ देव (सूर्यदेव) की उपासना है इसलिए इसे सावित्री मंत्र भी कहा जाता है। किन्तु सावित्री मंत्र में सात व्यहृतियाँ होती हैं| सावित्री मंत्र इस प्रकार है |
ओम् भू: ओम् भुवः ओम् स्व: ओम् मह: ओम् जन: ओम तप: ओम् सत्यम् ।तत्सवितुर्वरेंयम् भर्गो देवस्य धीमहि ।धियो यो न: प्रचोदयात ।
गायत्री मंत्र का उच्चारण
सभी वेदों के उच्चारण के अपने कुछ नियम होते हैं, जिनका पालन कर के ही सही वैदिक उच्चारण किया जाता है | यहाँ वे सभी नियम नहीं बताये जा सकते इसलिए केवल सामान्य रूप से की जाने वाली त्रुटियाँ ही यहाँ बताई जा रही हैं |
- वरेणियम गलत है, वरेण्यं सही है |
- कुछ व्यक्ति "भ" का उच्चारण "ब" करते हैं, और "भर्गो" को "बर्गो" बोलते हैं जो कि गलत है |
- कुछ व्यक्ति अधिक शुद्ध उच्चारण के भ्रम में "स" को "श" बोल देते हैं, जो गलत है | "देवश्य" गलत है, "देवस्य" सही है |
- इसी प्रकार "द" और "ध" का भी सही उच्चारण होना चाहिए | "धेवस्य" गलत है, "देवस्य" सही है | "दीमहि" गलत है, "धीमहि" सही है | "दियो" गलत है, "धियो" सही है |
- "न: प्रचोदयात" बोलते समय बीच में "फ" की हलकी से ध्वनि आती है | ऐसा इसलिए होता है क्योकि "न:" और "प्रचोदयात" के बीच में रुकना नहीं होता| जब बिना रुके एक शब्द की तरह "न: प्रचोदयात" को बोला जाता है तो बीच में "फ" की ध्वनि आना सही है |
- "स्व:" के उच्चारण में कुछ लोग "ऊ" मात्रा का प्रयोग करते हैं, जो गलत है | "सुवः" गलत है , "स्व:" सही है |
हमें आशा है कि इन बातों का ध्यान रख कर आप सही उच्चारण के साथ गायत्री महामंत्र का जप कर सकेंगे |
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