वैसे तो आतंकवाद का कोई मज़हब नहीं होता | चंद सिरफिरे लोगों की वजह से आतंकवाद को किसी धर्म से जोड़ना सही नहीं है | लेकिन ये भी सभी जानते हैं की दुनिया भर में किस धर्म से जुड़े हुए लोग आतंकवाद में सबसे ज्यादा लिप्त हैं | नौ -ग्यारह का आतंकवादी हमला , ओसामा-बिन-लादेन , ISIS और न जाने कितने आतंकवादी हमले एक ही धर्म को इन हमलों से जोड़ते हैं | लेकिन फिर भी एक संवेदनशील इंसान आतंकवाद को किसी धर्म से नहीं जोड़ेगा | आतंकी गतिविधियों में लिप्त ज्यादातर युवा या तो भटके हुए हैं, या भड़काए हुए हैं, या किसी व्यक्तिगत फायदे के लिए आतंक फ़ैलाने में लगे हैं | लेकिन ये भी सच्चाई है की सभी विचारक इतने संवेदनशील नहीं हैं | कुछ व्यक्ति ऐसे भी होते हैं जो बिना किसी की संवेदना की चिंता करे सच बोलना ही अपना धर्म मानते हैं |
आज के समय में ज्यादातर सवालों के जवाब Google पर आराम से मिल जाते हैं | इसलिए हमने Google Trends की मदद से ये जानने की कोशिश करी की दुनिया क्या सोचती है | Google Trends के जरिये हम ये जान सकते हैं की दुनिया में लोग किन शब्दों को ज्यादा search करते हैं | धर्म और आतंकवाद को जोड़ कर देखने के लिए हमने नीचे दिए गए शब्दों को जांच में प्रयाग किया |
यदि आप ग्राफ्स को समझते हैं तो आपको ये जानने में दिक्कत नहीं होगी की दुनिया भर में लोग किस धर्म को आतंकवाद से जोड़ कर देखते हैं | आप ये जानकारी इस compare लिंक पर जा कर भी देख सकते हैं | आप में से कुछ लोग ये भी कह सकते हैं की यह जानकारी एकतरफा है , और इस्लाम की मान्यता भी विश्व में काफी ज्यादा है | इसलिए हमने Google Trends पर इन्ही धर्मों के नाम search कर के देखे | इसका जो परिणाम आया वो नीचे दिया गया है |
इस परिणाम से ये स्पष्ट हो गया है की किस धर्म की मान्यता ज्यादा है | इसे Google Trends में देखने के लिए compare लिंक पर देख सकते हैं |
जिन परिवारों ने आतंकवादी हमलों में अपनों को खोया है , वो आतंकवाद को उसके धर्म या जाती से जरूर जोड़ेंगे | ये इंसानी फिदरत है | आप कितना ही समझाओ की वो आतंकवादी थे और उनका कोई ईमान या धर्म नहीं है , वो नहीं समझेंगे |
कट्टरता किसी भी धर्म में हो , वो सही नहीं है | एक सच्चा धार्मिक व्यक्ति कट्टर हो ही नहीं सकता | और अगर वो कट्टर है तो इसका मतलब सिर्फ इतना है की उसे अपने धर्म का सही ज्ञान ही नहीं है |
यहाँ दिए गए तथ्यों से किसी की धार्मिक मान्यता को ठेस पहुचना हमारा मकसद नहीं है | लेकिन ये सभी तथ्य ये साबित करने के लिए काफी है की खोट हम सब में है | किसी में कम है, किसी में ज्यादा | जिनमे ज्यादा है , उन्हें अपने नौजवानों को ज्यादा समझाने की जरुरत है | ज्यादातर नौजवान ही आतंकवाद की बीमारी से ग्रस्त हैं | यदि आज से सभी धर्मों के परिवार अपने बच्चों को गलत संगत से बचाएँ और सही मार्गदर्शन दें तो आने वाले २०-२५ सालों में आतंकवाद की बीमारी को कम किया जा सकता है |
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कट्टरता किसी भी धर्म में हो , वो सही नहीं है | एक सच्चा धार्मिक व्यक्ति कट्टर हो ही नहीं सकता | और अगर वो कट्टर है तो इसका मतलब सिर्फ इतना है की उसे अपने धर्म का सही ज्ञान ही नहीं है |
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